उजाले की ओर –संस्मरण

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------------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों हवाओं की शीतलता कभी राग में बदल जाती है तो कभी आग में, कभी स्नेह में तो कभी ईर्ष्या में, कभी कुहासे में तो कभी रोशनी में ! हमें तो उसके साथ चलना होता है जो हमारे सामने आता है। क्या हम बंद द्वार खोलकर गर्म हवाओं को शीतलता में परिवर्तित कर सकते हैं ? "तुम्हारा नाम आशा किसने रख दिया ?" मैं पूछ ही तो बैठी उससे। "क्यों, कुछ बुराई है मेरे नाम में ?" उसने अकड़कर कहा। "नहीं, बुराई ही तो नहीं है लेकिन तुम क्यों बुराई लाने की कोशिश कर रही हो ?