सेवा और सहिष्णुता के उपासक संत तुकाराम - 5

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मन को जीतना सबसे बड़ा पुरुषार्थतुकाराम जी ने अपने मन को वश में करने के लिए बड़ा प्रयत्न किया था और उन्होंने अन्य अध्यात्म-प्रेमियों को यही उपदेश दिया है कि मनोजय के बिना आत्मजय की बात करना दंभ मात्र है। पर मन का जीतना सहज नहीं और यही कारण है कि सार्वभौम सम्राटों की अपेक्षा भी अपने मन पर विजय प्राप्त करने वाले एक लंगोटीधारी साधु को संसार में अधिक महत्त्व दिया जाता है। इस तथ्य को समझाते हुए तुकाराम ने कहा–मन करा रे प्रसन्न, सर्व सिद्धि चे साधन।मोक्ष अथवा बंधन, सुख समाधान इच्छातें।अर्थात्– “भाइयों ! मन को प्रसन्न करो,