शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 7

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    दोहा   होरी के हुड़दंग में सब यैसे हुरयात ऊँच नीच छोटे बड़े आपस में मिलजात   एक दूजे को परस्पर जब हम रंग लगात मूठा देत गुलाल कौ भेदभाव मिट जात   भुला ईर्षा शत्रुता वैमनस्य और बैर एक रंग रंगजात सब को अपनों को गैर   रंग रंग के रंग जब एक रंग हो जात तब केशरिया संग हरा रंग बहुत हर्षात   होरी   विधि ने यैसी खेली होरी। अंग अंग रंग दई गोरी ।। विधि ने यैसी खेली होरी   बारन में कारौ रंग डारौ गालन मल दई रोरी ।। विधि ने