चमत्कारी रेखाएं

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जब मैं पांच साल का था तब मेरे घर एक नन्ही सी परी आई थी, मेरी बहन, कृतिका। मैं उसके साथ खेलता, बातें करता। भले ही वो गोद ली हुई थी, लेकिन थी मेरे लिए सगी बहन से भी बढ़कर। वो कुछ बोलती नहीं थी। जब वो बड़ी होने लगी, तब भी वो चुप–चुप सी ही रहने लगी। मम्मी–पापा चिंतित थे। मैं गेम्स खेलता और उन्हें उसको समझाता। वो बस मुझे अपनी बड़ी–बड़ी आंखों से घूरती रहती और मुझे लगता था वो समझ रही है। एक बार वो डॉक्टर के यहां से वापस आई तो मैंने उससे कहा कि –