कान्हूपात्रा मंगलवेढ़ा स्थान में रहने वाली श्यामा नाम्नी वेश्या की लड़की थी। माँ की वेश्यावृत्ति देख-देखकर उसे ऐसे जीवन से बड़ी घृणा हो गयी। जब वह पंद्रह वर्ष की हुई, तभी उसने यह निश्चय कर लिया कि मैं अपनी देह पापियों के हाथ बेंचकर उसे अपवित्र और कलंकित न करूँगी। नाचना-गाना तो उसने मन लगाकर सीखा और इस कला में वह निपुण भी हो गयी।कान्हूपात्रा के सौन्दर्य का कोई जोड़ ही नहीं था। श्यामा इसे अपनी दुष्टवृत्ति के साँचे में ढालकर रुपया कमाना चाहती थी। उसने इसे बहकाने में कोई कसर नहीं रखी, पर यह अपने निश्चय से विचलित नहीं