मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(९)

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जमींदार वीरभद्र सिंह जितने अय्याश थे ,जमींदारन कौशकी जी उतनी ही करूणामयी,ममतामयी और धार्मिक थीं,इसलिए जब जमींदार साहब की आवारागर्दी हद से ज्यादा बढ़ गई तो जमींदारन कौशकी सिंह हवेली छोड़कर लक्ष्मीनारायण मंदिर से कुछ दूर बने एक पुश्तैनी मकान में चलीं गईं जिसका नाम शांतिनिकेतन था,उस समय ओजस्वी दस साल की थी और तेजस्वी आठ साल की थी,जब जमींदारन साहिबा हवेली छोड़कर शांतिनिकेतन चलीं गईं तो तब जमींदार साहब को रोकने टोकने वाला कोई ना रह गया था,इसलिए अब जमींदार साहब बिलकुल आजाद थे इसलिए उनकी अय्याशियांँ और भी बढ़ गईं थीं और उनकी इस अय्याशी में उनका सबसे