तमाचा - 43 (दस्तक)

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दूर दूर तक सिर्फ रेत ही रेत। रेत के बड़े-बड़े पहाड़ जिस पर कहीं कहीं खेजड़ी और फोग की झाड़िया । आदमी और उसकी प्रजाति का दूर-दूर तक कोई अता पता नहीं। सभी विद्यार्थी इस आश्चर्यजनक वातावरण को देख अचंम्भित हो रहे थे। लेकिन दूसरी तरफ़ राकेश का ध्यान अब अपनी यात्रा और बाहर के नजारों से पूर्णतया हट गया था। अब उसकी नजरें बार-बार एक जगह पर आकर अटक जाती। तनोट पहुँचने से पहले बस एक बड़े रेत के धोरे के पास रुक गयी। सभी विद्यार्थी बाहर आये और और उस रेत के समुद्र में जैसे तैरने का लुफ्त