अनोखी प्रेम कहानी - 13

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कुँवर ने तत्काल अपने शरीर को देखा । शरीर को पूर्ववत् देख हतप्रभ हो गया । ' यह क्या लीला है माँ ? कौन हो तुम ? " उस अनिंद्य सुंदरी के रक्ताभ अधरों पर स्निग्ध मुस्कान बिखरी । मृदुल वाणी में उसने कहा- मैं कौन यह जानने की तुम्हें आवश्यकता नहीं है पुत्र ! परन्तु मैंने तुम्हें अवश्य जान लिया है । इस अंचल में आने का तुम्हारा प्रयोजन भी मुझसे छिपा नहीं है । कहो तो तत्काल तुम्हारे चक्रों का जागरण क्षणांश में मैं कर दूं ... परन्तु गुरु - आज्ञा मानकर षट्चक्र - नृत्य के माध्यम से