मैं तो ओढ चुनरिया - 42

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मैं तो ओढ चुनरिया    42   स्टेशन पर चाचाजी हमें साइकिल पर लेने आए हुए थे । पिता जी ने एक रिक्शा लिया । माँ पिताजी और मैं सामान के साथ रिक्शा पर बैठे । भाई चाचा जी के साथ साइकिल पर । टेढी मेढी तंग गलियों से होते हुए हम जैसे सारा शहर पार कर गये । ये चाचा जी हमें कहाँ लेकर जा रहे थे । अगर मैं दो तीन साल छोटी रही होती तो जरूर ताली बजाकर खिलखिला कर हँसती कि चाचा जी अपना घर भूल गये । हमारा घर तो गुरद्वारा बाजार में था ।