शब्द नहीं एहसास है - 2

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----- आज भी इन्तेज़ार है -----जो सबको मिल जाता है अक्सर बचपन में उस दोस्त का मुझे आज भी इन्तेज़ार है। स्कूल में जो तुम्हारे साथ बैठेसाथ आए और साथ घर जाएजो जी भर तुमसे बातें करें और जो चुप हो राहो तुम तो तुम्हारी खामोशी पढे जो डाँटे तुम्हें और मनाए भी जो रुलाये तुम्हें और हँसाये भी जो चुप्पी को समझना और तुम्हारी आँखों को पढ़ना जानता हो जो हो तुम्हारी हकीकत से वाकिफ़ और रग रग को पहचानता हो जो ये समझे की तुम्हारे लिए उसे किसी और के साथ बाँटना बड़ा मुश्किल सा काम है क्योंकि