मुखबिर उपन्यास मुकम्मल- डॉ जी के सक्सैना

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राजबोहरे:मुखबिर उपन्यास चंबल का उपाख्यान है- डॉक्टर गोपाल किशोर सक्सेनाहर ताकतवर आदमी के लिए मुखबिर की फौज चाहिए होती है |वह हर कीमत पर मुखबिर ढूंढता है |कभी पैसे के लालच से, तो कभी डरा धमका के अच्छे भले आदमी को मुखबिर बना लेता है वह| यही मुखबिर तो असली लड़ाई लड़ते हैं |जीते कोई, मरता मुखबिर है| यहां तक कि पूरे गांव के गांव मुखबिरी कर रहे हैं| पुलिस या डाकुओं में से किसी ना किसी का |जो मुखबिर नहीं है वह पिटता है दोनों के बीच| राजनारायण बोहरे के कहानी संग्रह इज्जत आबरू तथा गोष्ट तथा अन्य कहानियां