रामरति ने ये बात मोहल्ले के कोने कोने तक फैला और अब ये खबर उड़ती उड़ती मिसराइन तक भी पहुँच गई थीं और उसने मन में सोचा.... "अच्छा! तो अब "सौ चूहे खाके बिल्ली हज़ को चली",खुद कुकर्मिन होकर दूसरों को ज्ञान देती फिरती, अब मैं उसे ऐसा मज़ा चखाऊँगी कि जिन्दगी भर याद रखेगीं,बड़ी शरीफजादी बनी फिरती है,अब इसकी अकड़ तो मैं निकालूँगी" और मिसराइन तो मौके की ताक में थी और फिर दूसरे दिन शाम को सरगम को देखने गिरिजेश तिवारी अपने बड़े बेटे,बड़ी बहू,पत्नी और छोटे बेटे सर्वेश के साथ शास्त्री जी के घर आए तो शास्त्री