मैं पापन ऐसी जली--भाग(३०)

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फिर जब शास्त्री जी ने सरगम से ऐसा कहा तो सरगम ने कभी भी शिवसुन्दर शास्त्री जी के घर से जाने का नहीं सोचा,कुछ ही दिनों में उसे शास्त्री जी की सिफारिश से एक संगीत विद्यालय में संगीत अध्यापिका का काम मिल गया और वो दो तीन बच्चों को उनके घर पर जाकर ट्यूशन भी देने लगी थी,अब उसे लगने लगा था कि उसकी जिन्दगी पटरी पर आ गई है,उसे रहने को एक घर और शास्त्री जी जैसे पिता समान सज्जन की छत्रछाया मिल गई थी और व्यस्तता के कारण वो अपना अतीत भूलती जा रही थी,मोहल्ले के लोग भी