अनुच्छेद- 37 अपना आकाश खींच लाना हैहठी पुरवा में एक ही मंडप में कभी दो विवाह नहीं हुए थे और न कभी दिन में कोई शादी हुई। माँ अंजलीधर की योजना से दोनों संभव। आज हठीपुरवा उत्सव में डूबा हुआ। बाल युवा वृद्ध सभी के चेहरे खिले हुए। सभी अपने साफ-सुथरे दमकते कपड़ों में दौड़-दौड़ कर काम करते माँ अंजलीधर के निर्देशन में। माँ जी का भी उत्साह सातवें आसमान पर। रोटी, पूड़ी, सब्जी, खीर, पुलाव की महक परिवेश में। अंगद पुरवे के लोगों के साथ भोजन की तैयारी में। नन्दू और हरवंश तथा अन्य युवा जलपान का दायित्व सँभालते