मुखियाईन...

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"क्यों री! आज फिर तेरी देह पर चोट के निशान हैं,आज फिर मारा क्या लल्लू ने तुझे"?, मुखियाईन ने अपनी मेहरी(कामवाली) गुन्जा से पूछा.... "क्या बताऊँ मुखियाईन कल रात फिर पीकर आया था वो,माँस पकाने को कह रहा था लेकिन मेरे पास इतनी रकम कहाँ से आई जो उस निठल्ले को माँस पकाकर खिलाऊँ,आपका दिया हुआ खाना धर दिया उसके सामने तो बिफर पड़ा और फिर वही रोज की कहा-सुनी और फिर मार-पिटाई", गुन्जा बरतन माँजते हुए बोली... "तू क्यों सहती है इतना? छोड़ क्यों नहीं देती उस जालिम लल्लू को", मुखियाईन बोली... "मुखियाईन! इतना सरल नहीं होता हम औरतों