अनुच्छेद- 26 उम्मीद की किरण जेठ के दिन। दिन में झुलसाने वाली लू । उत्तर भारत में कितने ही असहाय लू की चपेट में परलोक सिधार जाते हैं। शाम को पछुआ धीमी हुई। चाँद निकला तो कुछ शीतलता का आभास होने लगा। लोग कमीज़, बनियाइन उतार कर गाँव के बाहर बैठते जिससे हवा शरीर में लगे। नन्दू और अंगद ने गाँव में ही कुछ करने की बात क्या चलाई, नर-नारी सभी में उत्साह की एक लहर सी पैदा हो गई। बालिग होते ही लोग बाहर भागते हैं। अब अगर गाँव में ही कुछ काम का जुगाड़ हो सके तो कितना