================= जीवन की भागदौड़ में भी न जाने कितनी बातें ऊपर-नीचे होती रहती हैं, फिर भी इंसान अपनी इस भाग-दौड़ से पीछा कहाँ छुड़ा पाता है---और दरअसल भाग-दौड़ होती है उसके मस्तिष्क से! मस्तिष्क में उमड़ते झंझावात उसे चैन से रहने ही नहीं देते और फिर मस्तिष्क के साथ उसकी शारीरिक थकान भी शुरू हो जाती है | मेरा मस्तिष्क थकता था, कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था जीवन के चक्र में से कैसे निकलूँ या उसमें ही मकड़ी की तरह चक्कर मारती रहूँ? उलझनों के जाले में अटका हुआ इंसान कोई स्पष्ट राह नहीं तलाश कर पाता