बहेलिया –मानवीयता का दस्तावेज़ यशवंत कोठारी संवाद-हीनता व संवेदन शून्यता के इस संक्रमण काल में मानवीयता की चर्चा करना या मानवीयता को आधार बना कर कुछ लिखना आसान काम नहीं है.रोबो व कृत्रिम बुद्धिमत्ता के कारण सब कुछ गड्ड-मड्ड हो गया है .ऐसे कलिकाल में प्रभाशंकर उपाध्याय का उपन्यास बहेलिया एक ताज़ा हवा के झोंके की तरह है जिसे महसूस किया जाना चाहिए. कहानी सौरभ नाम के एक युवा की है जो बैंक में नौकरी शुरू करता है ,उसके साथ कई प्रकार की घटनाएँ घटित होती है .बीच बीच में व्यंग्य व हास्य के छीटें भी हैं. एक यूनियन