लघुकथा क्रमांक 21 भय का भूत--------------रात आधी से अधिक बीत चुकी थी। हॉरर लघुकथाएँ पढ़ते पढ़ते अमर सो गया था। हमेशा की तरह आज भी बिजली गुल थी। अमावस की रात पूरे शबाब पर थी। अँधेरे का साम्राज्य पसरा हुआ था। हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहे थे। अचानक तेज हवा चली। खिड़की के पट खुल गए और खिड़की पर लगे परदे उड़ने लगे। हवा की तेज सरसराहट से अमर की नींद खुल गई। उसने उठकर खिड़की से लहराते हुए परदे को सही करते हुए बाहर झाँककर देखा। बाहर मौसम एकदम शांत लग रहा था। 'फिर ये अचानक इतनी