लघुकथा क्रमांक 18कोरोना *******"अरे रमेश ! वो अपने कालू अंकल नहीं दिखे पिछले कई दिनों से ? तुझे कुछ पता है ?" "कौन कालू अंकल ?"" अरे वही ...जो हरदम शेखी बघारते रहते हैं। मास्क लगानेवालों पर अक्सर हँसा करते हैं। अभी उस दिन तेरे सामने ही तो बोल रहे थे 'कोरोना वोरोना कुछ नहीं ,सब ढकोसला है, झूठ है।"" अच्छा.. वो ? ..वो तो परसों ही स्वर्ग सिधार गए !" " हे भगवान ! भले चंगे तो थे। फिर अचानक क्या हो गया था उनको ?" "कोरोना !"**********************************************लघुकथा क्रमांक 19बस ! अब और नहीं ------------------------"तो क्या सोचा है तुमने