हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 31

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दादरीमें एकान्त-सेवन:भाईजीकी एकान्त सेवनकी लालसा फाल्गुन सं० 1995 (सन् 1938) से पुनः तीव्र हो गई। काम करते थे पर मन नहीं लगता था। इस समय श्रीसेठजी द्वारा गीताकी तत्त्व-विवेचनी टीका लिखायी जा रही थी जिसे सं० 1996 (सन 1939) के कल्याण के विशेषांकके रूपमें निकालनेका निश्चय किया गया था। इस कार्यसे भाईजीको कुछ समय बाँकुडा भी रहना पड़ा। पर मनमें निश्चय कर लिया था कि इसके पश्चात् गोरखपुरसे कहीं एकान्तमें जाना ही है। श्रावण 1996 में गीतातत्त्वांक छपकर तैयार हुआ। इसी बीच भाद्र कृष्ण 3 सं० 1996 (1 सितम्बर, 1939) को द्वितीय महायुद्ध आरम्भ हो जानेसे श्रीसेठजीने पन्द्रह-बीस दिन जानेसे