हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 30

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रतनगढ़में निवास'कल्याण' का सम्पादन एवं सेवा कार्योंका संचालन करते हुए भी भाईजीका मन बीच-बीचमें सर्वथा एकान्त सेवनके लिये व्यग्र हो जाता। जब भी किसी निमित्त ऐसा शुभ अवसर मिलता भाईजी एकान्तमें चले जाते। ऐसा ही एक अवसर मिलने पर ये अपने मित्र लच्छीरामजी चूड़ीवालाके आग्रह पर आश्विन कृष्ण 3 सं० 1989 (18 सितम्बर, 1932) को लक्ष्मणगढ़ गये। वहाँ ऋषिकुलके संचालनकी व्यवस्थाके सम्बन्धमें परामर्श करके वहाँसे रतनगढ़ चले गये। वहाँ रहनेकी इच्छा थी, अतः 'कल्याण' के सम्पादकीय विभागको भी वहीं बुला लिया। एकान्तकी दृष्टिसे, रहने के लिय मोतीराम भरतियाकी ढाणीको चुना जो शहरसे लगभग डेढ़ मील दूर थी। 'कल्याण' के सम्पादन