खटाई अचार मे अच्छी लगती, रिश्तों में नहीं

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रज़ाई में दुबके हुए स्मृति ने चाय खत्म की। प्याला बिंदु को ले जाने के लिए आवाज़ दी। माँ कहाँ है? पूछने पर उसने बताया कि वो छत पर धूप सेंक रही हैं। स्मृति ने घड़ी की तरफ देखा साढ़े ग्यारह हो आए थे। कल रात भर वो सो नहीं पाई थी। रात का तापमान तो गिर रहा ही था साथ ही उसके मन के अंदर सर्द हवाएं चल रही थी जिन्होंने उसे सोने ना दिया। विनीत की याद आ रही थी। बड़े मुश्किल से मन को समझाया कि ये नर्म होने का समय नहीं है। आज वो नर्म पड़ेगी