कितनी वेदना कितनी विरह. कितने समर्पण के बाद चंद्रमुखी के हिस्से मे देवदास का प्रेम आता है...वो भी मृत्यु के निकट होने पर देवदास की प्रेम स्वीकृति...वो देवदास जो चंद्रमुखी को इसलिए छुने नही देता क्योकि वो पारो का है...देवदास का प्रेम तो पारो के लिए और चंद्रमुखी का प्रेम देवदास के लिए...देवदास पर जाने कितनी ऐसी कहानिया लिखी गई होगी पारो को पा न सकने का गम देवदास को था और उसे भुलाने के लिए वो चंद्रमुखी के प्रेम का सहारा लेता हैवो तो पारो का ही रहता उम्र भर मरते दम तक चंद्रमुखी का क्या..वो कितनी निर्मल सरलता