शिष्य आगे चल कर प्रश्न करता है : ज्ञान की प्राप्ति का रास्ता क्या है, और यह इतना कठिन क्यों है, जिस गुरु ने ज्ञान प्राप्त कर लिया है, वह अपने शिष्यों को इसे सीधे ही क्यों नहीं दे देता. ऋषी दुविधा का समाधान करता है: “जीवन का ज्ञान दिया नहीं जा सकता यह सिर्फ जिया जा सकता है”, गुरु भी नहीं दे सकता, वह गुरु भी नहीं दे सकता, जिसने इसको जान लिया है, जो जागृत हो गया है. क्योंकि यह ज्ञान जीने में है, साधना की राहों पर, चलते चलते कब यह घटित हो जाये, यह शिक्षक