एक-एक करके सभी रिश्तेदार गंगा को छोड़ कर चले गए और अपने-अपने ठिकाने पहुँच गए। गंगा के मन के अंदर भभकता हुआ दिया एकदम से बुझ गया। अब वह बिल्कुल अकेली थी। मोहन और शालू कभी उसे कचरा बीनने नहीं जाने देते थे। वह पहला दिन था जब उसे शालू ने कहा था, "तू बहुत ज़िद्दी है, रोज़ एक ही पहाड़ा पढ़ती है, जा ले आ।" गंगा के कानों में बार-बार यही शब्द गूँजा करते थे। वह सोच रही थी शायद भगवान ही उसे बचाना चाहते थे। अम्मा कभी हाँ नहीं कहती थी पर उस दिन उन्होंने हाँ कह दिया