अपने माता पिता के पार्थिव शरीर के साथ गंगा पूरे समय अस्पताल में ही थी। घर पहुँचते ही उसने देखा उसकी खोली के सामने भीड़ लगी है, जिसमें उसके नज़दीकी रिश्तेदार और अड़ोसी पड़ोसी खड़े उनका इंतज़ार कर रहे थे। उसके तुरंत बाद ही मोहन और शालू की अंतिम विदाई की तैयारियाँ होने लगीं। जैसे ही उनके पार्थिव शरीर को अंतिम यात्रा के लिए उठाकर कंधा दिया जाने लगा, तब पहली बार गंगा फूट-फूट कर ज़ोर से रोने लगी। "अम्मा बापू मत जाओ मैं अकेली क्या करूंगी? कैसे खींचूंगी कचरे की गाड़ी। अम्मा तुम मुझे कचरा बीनने नहीं जाने देती