मोहन और शालू हर रोज़ सुबह अपनी तीन पहियों की साइकिल लेकर कचरा बीनने जाते थे। उसी से उनकी जीविका चलती थी। गाड़ी भले ही कचरे की हो पर वह अपनी गाड़ी को बड़ा ही सजा कर रखते थे। जैसे-जैसे पहिये घूमते घुंघरुओं की मद्धम-मद्धम आवाज़ कानों में एक तरंग छोड़ देती, जो कानों को बड़ी अच्छी लगती थी। आने जाने वाले उनकी गाड़ी की तरफ़ एक नज़र देखते ज़रूर थे। शालू ने विवाह के एक वर्ष के अंदर ही एक प्यारी-सी बेटी को जन्म दिया और उसका नाम रखा था गंगा। गंगा के जन्म के समय ही डॉक्टर ने