एक योगी की आत्मकथा - 19

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{ मेरे गुरु कोलकाता में, प्रकट होते हैं श्रीरामपुर में }“ईश्वर के अस्तित्व के विषय में शंकाओं से मैं प्रायः उद्विग्न हो जाता हूँ। फिर भी एक कष्टप्रद विचार बार-बार मुझे सताता रहता है: क्या आत्मा में ऐसी सम्भावनाएँ नहीं हो सकतीं जिन्हें मानवजाति ने कभी प्रयुक्त ही न किया हो ? यदि इन सम्भावनाओं का पता मनुष्य नहीं लगा पाता, तो क्या वह अपने वास्तविक लक्ष्य से चूक नहीं जाता ?”यह मन्तव्य पंथी छात्रावास के कमरे में मेरे साथ रहने वाले दिजेन बाबू ने तब प्रकट किया जब मैंने उन्हें आकर अपने गुरु से मिलने के लिये कहा।“श्रीयुक्तेश्वरजी तुम्हें