एक योगी की आत्मकथा - 17

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{ शशि और तीन नीलम }“तुम्हारी और मेरे बेटे की स्वामी श्रीयुक्तैश्वरजी के बारे में इतनी ऊँची धारणा होने के कारण ही में किसी दिन उनसे मिलने आ जाऊंगा।” डॉक्टर नारायण चंदर राय के स्वर से यह स्पष्ट था कि वे केवल मूर्खों की सनक के प्रति सौजन्य दिखा रहे थे। मतांतरण करने वालों की परंपरा के अनुसार मैंने अपने रोष को अन्दर ही अन्दर दबा लिया।ये डॉक्टर महोदय, जो पशु चिकित्सक थे, विचारों से पक्के नास्तिक थे। उनके युवा पुत्र सन्तोष ने मुझसे उनमें रुचि लेने के लिये अनुनयविनय किया था। अभी तक तो मेरी अमूल्य सहायता कुछ अदृश्य