शादी के सात साल तक विनय और दीपा जब मां-बाप नहीं बनते हैं, तो विनय अपनी पंसारी की दुकान की जगह खिलौने की दुकान खोल लेता है, ताकि रोज मासूम बच्चों से उसकी मुलाकात होती रहे। यह तरीका विनय को उसकी पत्नी दीपा ने बताया था। दीपा भी रोज घर का काम खत्म करके पति की खिलौने की दुकान पर बच्चों से मिलने और बातें करने आ जाती थी।विनय अलग अलग किस्म के बढ़िया आधुनिक खिलौने बच्चों को उचित दामों में बेचा करता था। और जब भी किसी बच्चे के पास कम पैसे होते थे या पैसे नहीं होते थे,