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कैसे भूल सकता हूँ ,उन दिनों को भूलना चाहूं, तो भी नही।ऐसे दिन भगवान किसी भी बाप को न दिखाए।और माफ भी नही कर सकता उन लोगों को जो आदमी को कर्ज के जाल में फसाते है।सुना है कि हमारे भारत मे ही एक बार सूदखोर यानी साहूकार से कर्ज ले लिया तो पीढियां बीत जाती थी।ब्याज देते देते लेकिन मूलधन नही चुकता था।आज भी मिलती जुलती ही स्थिति है।बदले रूप में पहले गांवों में सेठ,साहूकार व इसी तरह के और लोग होते थे।जो गरीबो या जरूरतमंदों को उधार पैसा देते थे।और ये पैसे कभी भी नही चूकते थे।चुकाने के