न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम्। कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्॥ “मुझे राज्य नहीं चाहिये, स्वर्ग नहीं चाहिये और मोक्ष भी मैं नहीं चाहता। मैं तो नाना प्रकार के दुःखों से पीड़ित प्राणियों की आर्ति-पीड़ा का नाश चाहता हूँ।” उशीनर के पुत्र शरणागतवत्सल महाराज शिवि यज्ञ कर रहे थे। शिबि की दयालुता तथा भगवद्भक्ति की ख्याति पृथ्वी से स्वर्ग तक फैली थी। देवराज इन्द्र ने राजा की परीक्षा करने का निश्चय किया। इन्द्र ने बाज पक्षी का रूप धारण किया और अग्निदेव कबूतर बने। बाज के भय से डरता, काँपता, घबराया कबूतर उड़ता आया और राजा शिबि की गोद में बैठकर