गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 9

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और मेरे बहनोई,साले सब कुंवर कलेवे में बैठे थे।रिश्ता 21 महीने पहले हुआ था।मेरा गांव और ससुराल ज्यादा दूर नही थी। मेरे श्वसुर भी बांदीकुई आते रहते थे।हमारे गांव के कई लोग भी उनसे मिलते रहते थे।न जाने कैसे यह बात वहाँ तक पहुंच गई थी कि मैं बहुत गुस्से बाज हूँ।और यह बात मेरी मंगेतर और अब पत्नी जिसके साथ फेरे ले चुका था।के कानों तक भी पहुंच चुकी थी।इसलिय रिश्ता होने पर मेरे श्वसुर आगे के बेटी के जीवन को लेकर आशंकित भी थे।उन दिनों में दहेज में मोटर साईकल या कार का चलन नही था।मिडिल क्लास की