ताश का आशियाना - भाग 28

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घर में पहुंचते ही सिद्धार्थ ने पहला फोन पहली बार किसी को लगाया होगा तो वो थी, प्रतीक्षा।विषय एक ही, "रागिनी घर पहुँची क्या?" "नहीं सिद्धार्थजी वो नहीं आई।"यह वाक्य मानो कोई गरम लावा घोल रहा था कानो में। उसने कोई और बात ना सुनते झट से फोन काट दिया। बेचैनी ने कब अधीरता का रूप ले लिया पता ही नहीं चला।और अब जब सिद्धार्थ ने तुषार की गले पर निशान बने देखा तो उसने अपना आपा खो दिया।गुस्सा और अधीरता शत्रु होते हैं विवेक बुद्धि के।जो कोई भी झूठ साबित कर सकता था, सिद्धार्थ ने वही सच मान लिया