भाग -19 नाश्ता अब भी जस का तस रखा था। हम-दोनों ने एक-दो घूँट कॉफ़ी ही पी थी बस। वृंदा की बातें सुनकर मैं बहुत भावुक हो गई। मैंने कहा, “सच वृंदा तुम जैसे लोग ही इस पृथ्वी पर साक्षात् देव-दूत हैं। लेकिन मेरी प्यारी वृंदा, यह क्यों भूल रही हो कि इसके ट्रीटमेंट में कोई दस-बीस हज़ार नहीं, दस-बीस लाख रुपए लगना एक मामूली बात है . . .” वृंदा ने मुझे यहीं रोकते हुए कहा, “जानती हूँ। ईश्वर की कृपा से हस्बैंड बिज़नेसमैन हैं। और बिज़नेस इतना बड़ा है कि यह रक़म उनके लिए कुछ भी नहीं है।