मित्रता निभाने का एक और अनुपम उदाहरण श्री हरिराम शर्मा की एक घटना आप पहले पढ़ चुके हैं। ये रतनगढ़ निवासी थे और बम्बई में भाईजी के मित्र बन गये थे। भाईजी ने इन पर अनेकों बार ऐसे-ऐसे उपकार किये थे, इस प्रकार के संकटों से निवारण किया था कि जिसका बदला वे प्राण न्यौछावर करके भी नहीं चुका सकते थे।भाईजी की कृपापूर्ण उदारता ही उनकी आजीविका का एक बड़ा अवलम्बन था। परन्तु संग के असर की बलिहारी है। रतनगढ़ जाकर वे कुसंगमें पड़ गये। फाल्गुन सं० १९८५ (मार्च, १९२६) में बीमार पड़कर मरणासन्न हो गये और लोगों के बहकावे