"नींद का सौदा" (गोपी की विरह व्यथा) एक दिन वृंदावन की बाज़ार मैं खडी होकर एक सखी कुछ बेच रही है, लोग आते हैं पूछते हैं और हँस कर चले जाते हैं। वह चिल्ला चिल्ला कर कह रही है कोई तो खरीद लो, पर वो सखी बेच क्या रही है ? अरे ! यह क्या ? ये तो नींद बेच रही है। आखिर नींद कैसे बिक सकती है ? कोई दवा थोडी है, जो कोई भी नींद खरीद ले। सुबह से शाम होने को आई कोई ग्राहक ना मिला। सखी की आस बाकी है कोई तो ग्राहक मिलेगा शाम तक