श्री भगवन् नाम-प्रचार भगवान् के आदेशानुसार श्रीभाई जी श्री भगवन् नाम-प्रचार में पूर्ण मनोयोग से लग गये। निवास-स्थान पर नित्यप्रति संकीर्तन होने लगा। संकीर्तन नित्य रात्रि में तो ग्यारह-बारह बजे तक समाप्त होता पर दीपावली, कार्तिक कृष्ण ३० सं० १९८४ (२५ अक्टूबर, १९२७) को रात्रि के पौन दो बजे तक भाईजी मस्ती से संकीर्तन कराते रहे। अंत में बोले– “भगवान् के नाम का कीर्तन कराने से अनन्त लाभ होता है। कीर्तन की ध्वनि जहाँ तक जाती है, वहाँ तक के सभी जीव-जन्तु पवित्र हो जाते हैं। वास्तव में कीर्तन की महिमा अनिर्वचनीय है। कई बार भाईजी खड़े होकर प्रेम से