गोरखपुर का जीवन उस समय गोरखपुर शहर जलवायु, मकान, रास्ते आदि सभी दृष्टियों से गया-गुजरा था। बम्बई के अच्छे मकान में रहने वाले भाई जी के रहने योग्य गोरखपुर कदापि नहीं था। गोरखपुर में रहने का प्रधान हेतु 'कल्याण' एवं 'गीताप्रेस' ही था। पूज्य श्रीसेठजी को भाईजी सदैव गुरुतुल्य मानते थे। पूज्य सेठजी की आज्ञा थी कि 'कल्याण' गीताप्रेस से प्रकाशित हो और भाईजी उसे सम्भालें। गोरखपुर में भाईजी ने अपने रहने का स्थान गीताप्रेस एवं शहर से २-२ मील दूर असुरन के पोखरे एवं रेलवे लाइन के समीप में श्रीकान्तीबाबू के बगीचे को चुना। वह बगीचा किराये पर लिया