सार्वभौम का उद्धार संन्यास ग्रहण करने के पश्चात् प्रभु श्री गौरसुन्दर प्रेम में उन्मत्त होकर वृन्दावन की ओर चल दिये, परन्तु नित्यानन्द प्रभु छलपूर्वक उन्हें शान्तिपुर में श्री अद्वैताचार्य के घर ले आए। वहाँ से वे अपनी माँ श्रीशची माता से आज्ञा लेकर कुछ परिकरों के साथ नीलाचल पहुँचे। पुरी से कुछ दूरी पर ही श्रीनित्यानन्द प्रभु ने उनका दण्ड तोड़कर नदी में प्रवाहित कर दिया। इससे श्रीमन् महाप्रभु दुःखित होकर अकेले ही आगे चल पड़े और श्रीमन्दिर में उपस्थित हुए। मन्दिर में श्रीजगन्नाथ देव का दर्शनकर प्रेमाविष्ट होकर वे उन्हें आलिङ्गन करने के लिए दौड़े। परन्तु बीच में ही