मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 32

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भाग 32फिज़ा के मुहँ पर तो जैसे ताला लग गया था। जो हिम्मत और विश्वास उसने जुटाया था सब टूटने लगा। उसके पैर भी काँप रहे थे। शबीना भी गुस्से से आग बबूला हो गयी। उसने फिज़ा को वहाँ से हटा दिया और अन्दर वाले कमरें में धकेल दिया था और खुद उसके सामने आकर खड़ी हो गई थी- "मुझे बताओ क्या कहना है तुम्हे? क्या कर लोगे तुम हमारा? आरिज़ तुम बड़े ही गलीच और ऐयाश किस्म के इन्सान हो ये तो हम समझ चुके थे लेकिन हैवान भी हो ये आज जान लिया। तुमने तो अपनी सारी हदें