बेबस मां

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वाजिद हुसैन की कहानी - मार्मिक हर रोज़ झोपड़ी के चबूतरे पर बैठी हुई गुल्लू पिता को पगडंडी से ऊपर जाते हुए देखकर रूआंसी हो जाती, कहती, सपने में मां आई थी। मां ने पास आकर गुल्लू को गले से लगाया, 'गोद में बैठाया, उसके बालों को सहलाया।' मां का चेहरा याद नहीं रहता, फिर भी मिलने का संतोष बना रहता है। वह रोज़ पिता से कहती है, 'पप्पा मैंने एक सपना देखा।' उस समय मोहन भी नहीं पूछता कि गुल्लू ने सपने में क्या देखा। उसे मालूम है कि गुल्लू कौन-सा सपना देखती है। वह रोज़ एक ही सपना