श्री चैतन्य महाप्रभु - 7

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महाप्रभु की गया यात्राअब निमाइ को विवाह योग्य देखकर श्रीशची माता ने विष्णुप्रिया नाम की कन्या से उनका विवाह कर दिया। श्रीगौरसुन्दर के विवाह से शचीमाता निश्चिन्त हो गयीं। अपने पुत्र एवं पुत्रवधु की अपूर्व जोड़ी देखकर वे फूली नहीं समा रही थीं। विष्णुप्रिया ने भी अपनी सेवा एवं मधुर स्वभाव से परिवार के सभी सदस्यों को अपने वश में कर लिया। उनकी सेवा, सरलता एवं उज्ज्वल चरित्र से श्री गौरसुन्दर भी अति प्रसन्न थे।उस समय संसार में भक्ति प्रायः लुप्त हो गयी थी। सर्वत्र ही ज्ञान, कर्म, योग अथवा नास्तिकता का साम्राज्य फैला हुआ था। संसार की नास्तिकता देखकर