मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 29

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भाग 29 "नही..नही.........तलाक नही आरिज़......" कह कर फिज़ा चीख पड़ी। उसने अपनें दोनों कानों पर हाथ रख लिये। वह तलाक के उस तमाचे की टीस को महसूस कर तड़प उठी। एक ठंडी साँस लेकर उसने खुद को उस जहन्नुम सी यादों से बाहर किया। उसे याद आया वह तो मायके में है। और सब कुछ खत्म हो चुका है। तलाक का तूफान और हमल गिरने का कहर दोनों ही उसकी जिन्दगी से गुजर कर एक बीता हुआ हिस्सा बन चुके हैं।फिज़ा के चीखने की आवाज़ सुन कर शबीना दौड़ कर कमरें में आ गयी- " फिज़ा मत रो बच्ची, कितना