मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 28

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भाग 28पूरे तीन दिन के बाद आज किचिन में भाभी साहब दिखाई दीं। वह रोज की तरह बच्चों का टिफिन बना रही थीं। खुशी के मारे वह उछल पड़ी जैसे कोई निआमत मिल गयी हो। सुख के लम्हों को गुजरने में वक्त नही लगता मगर दुख की एक भी घड़ी काटे नही कटती। फिज़ा लपक कर किचिन की तरफ पहुँच गयी और जाकर सीधा शिकायती लहज़े में पूछ लिया- "भाभी साहब, हमसे कोई गुस्ताखी हुई है क्या? क्यों बात नही कर रही आप हमसे? बताइये न..?" अफसाना गुमसुम सी काम करती रही। उसने न तो फिज़ा की बात का जवाब