अधूरी मुलाकात... - 1

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कुछ मुलाकातों की भी अपनी ही एक अलग किस्मत होती है जो एक तय मुकाम पर ही आकर रुकती है ।ऐसी मुलाकातें जाने कब, कहां और कैसे हो जाएं, ये न तो हम जानते है और न ही वो जो इससे होकर गुजरते है पर हां एक बात तो हमेशा तय रहती है कि इन्हे चाहकर भी भुलाया नही जा सकता और कोई चाहे जितना अपने जेहन से झगड़ ले पर दिल तो इन्ही मुलाकातों के पन्नों को बार-बार पलटता रहता है, भला जिद्दी जो ठहरा । ऐसी ही एक मुलाकात से आज राजीव भी गुजरने वाला था जो कॉफी