बहुत समय पहले की बात है,मेरे दादाजी के एक दोस्त थे जिनका नाम अच्छेलाल था,वें दादाजी के बहुत करीबी थी,इसलिए उनके स्वर्ग सिधारने पर दादाजी बहुत दुखी थे,मैनें उनसे उनके उदास होने का कारण पूछा तो तब उन्होंने मुझे अच्छेलाल जी की कहानी सुनाई थीं..... वें उस जमाने के मैट्रिक पास थे,उन्होंने बाइस साल की उम्र से साठ साल तक की उम्र केवल चिट्ठियांँ बाँटने में ही गुजार दी थी,उन्हें अपने इस काम से बहुत संतुष्टि थी इसलिए उन्होंने हमेशा अपना पदोन्नति पत्र खारिच करवा दिया,तब ना ही कबूतर के गले में संदेश बाँधे जाते थे और ना ही टेलीफोन