अपना आकाश - 19 - फुलौरी बना रही हूँ

  • 3.4k
  • 1.9k

अनुच्छेद- 19 फुलौरी बना रही हूँआज नया लहसुन हजार रुपये कुन्तल बिका है। नागेश के मुनीम ने मंगल को बताया । । सुनते ही मंगल को झटका लगा। हजार रुपये......कुन्तल । वे गिरते गिरते बचे। 'यह भी कोई भाव है', उनके मुख से निकला । 'भाव हम लोग तो बनाते नहीं, भैया जी । भाव तो भाव है। कभी ऊपर चढ़ता है कभी नीचे जाता है। कभी आसमान छूता है तो कभी पाताल में बैठ जाता है । भाव का यही तो मजा है। कुछ भी निश्चित नहीं।' मुनीम जी बताते रहे । 'किसी की गाढ़ी कमाई होती है मुनीम