प्रेम गली अति साँकरी - 58

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========= वह रात मेरे लिए फिर करवटें बदलने की रात थी | मालूम नहीं क्या हो जाता था ?क्यों इतनी हलचल रहती थी?क्यों मन अक्सर उदास, अनमना सा हो जाता था |  ऐसी चुप्पी क्यों लगी है ज़िंदगी के बावज़ूद,  क्यों अँधेरों में छिपी है ज़िंदगी के बावज़ूद |  मुझे बार-बार लगता कि ज़िंदगी मेरे लिए ही क्यों इतनी गुमसुम सी है?यह जानते हुए भी कि कमी मेरी ही है, निर्णय न लेने का साहस क्यों नहीं कर पाती मैं?हम जिन्हें सड़क पार के मुहल्ले का कहते हैं, देखा जाए तो कितने ही परिवार वहाँ ऐसे थे जिन्होंने किसी की